दलित छात्र की ओर से उपस्थित वकील ने पीठ को बताया कि चूंकि अभ्यर्थी के पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं, इसलिए 17,500 रुपये की प्रवेश फीस का प्रबंध करने में आईआईटी पोर्टल की समय-सीमा से अधिक समय लग गया।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता जैसे प्रतिभाशाली छात्र, जो हाशिए के समूह से आते हैं और जिन्होंने प्रवेश पाने के लिए सब कुछ किया, को नहीं छोड़ा जाना चाहिए
सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए अनुसूचित जाति के एक अभ्यर्थी को राहत प्रदान की, जो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) धनबाद में प्रवेश के लिए अर्ह था, लेकिन 17,500 रुपये की फीस जमा करने में देरी के कारण उसे प्रवेश से रोक दिया गया था।
दलित छात्र की ओर से उपस्थित वकील ने पीठ को बताया कि चूंकि अभ्यर्थी के पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं, इसलिए 17,500 रुपये की प्रवेश फीस का प्रबंध करने में पोर्टल की समय-सीमा से अधिक समय लग गया।
पोर्टल पर फीस जमा करने की आखिरी तारीख 24 जून थी। वकील ने कहा कि उम्मीदवार ने 24 जून को शाम 4.45 बजे तक पैसे का इंतजाम कर लिया, लेकिन जब तक उसने दस्तावेज अपलोड किए और ऑनलाइन भुगतान के लिए आगे बढ़ा, तब तक समय शाम 5 बजे की समय सीमा पार हो गई। वकील ने आज अदालत को बताया कि उसने ग्रामीणों से पैसे एकत्र किए और आखिरी समय में ही पैसे का प्रबंध कर पाया, जो बैंक खाते के विवरण से स्पष्ट है।