दिवाली क्यों मनाई जाती है? जानिए इस प्रमुख त्योहार का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

दिवाली क्यों मनाई जाती है? जानिए इस प्रमुख त्योहार का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

दिवाली, जिसे दीपावली के नाम से भी जाना जाता है, भारत का सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से मनाया जाने वाला त्योहार है। यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हर साल हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक माह की अमावस्या के दिन दिवाली मनाई जाती है। यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की जीत, बुराई पर अच्छाई और अज्ञानता पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। आइए जानते हैं कि दिवाली क्यों मनाई जाती है और इसके धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व के बारे में विस्तार से।

दिवाली का धार्मिक महत्व

1. भगवान राम की अयोध्या वापसी

दिवाली का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण धार्मिक कारण भगवान राम की अयोध्या वापसी से जुड़ा हुआ है। हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, भगवान राम, लक्ष्मण और सीता ने 14 वर्षों के वनवास के बाद राक्षस राजा रावण को पराजित किया और अयोध्या वापस लौटे। उनके आगमन पर अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत के लिए घी के दीये जलाए और पूरे नगर को दीपों से सजाया। तभी से दिवाली को प्रकाश के त्योहार के रूप में मनाया जाता है, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।

2. भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी

हिंदू धर्म के अनुसार, दिवाली के दिन भगवान विष्णु ने राक्षस बलि को पाताल लोक भेजा और तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्त किया। इस दिन को भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा के साथ जोड़ा जाता है। लक्ष्मी देवी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है और दिवाली के दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन जो लोग सच्चे मन से लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं, उनके घर में धन और समृद्धि आती है।

3. भगवान कृष्ण और नरकासुर वध

दिवाली का एक और धार्मिक कारण भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ है। पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण ने दानव नरकासुर का वध किया था और 16,000 स्त्रियों को उसकी कैद से मुक्त कराया था। यह घटना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसलिए दिवाली को विजय का त्योहार माना जाता है।

4. महावीर निर्वाण दिवस

जैन धर्म में भी दिवाली का विशेष महत्व है। जैन धर्म के अनुयायियों के अनुसार, इस दिन भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था। इसलिए जैन समुदाय के लोग दिवाली को आध्यात्मिक शुद्धता और मुक्ति का दिन मानते हैं।

5. सिख धर्म में दिवाली का महत्व

सिख धर्म में भी दिवाली का विशेष महत्व है। सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोविंद जी, को मुगल सम्राट जहांगीर ने ग्वालियर के किले में बंदी बनाया था। दिवाली के दिन उन्हें रिहा किया गया था और तभी से सिख समुदाय इस दिन को ‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाता है।

दिवाली का सांस्कृतिक महत्व

1. अंधकार पर प्रकाश की विजय

दिवाली का सबसे बड़ा सांस्कृतिक प्रतीक अंधकार पर प्रकाश की विजय है। यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें और अंधकार क्यों न हों, अंततः सत्य और अच्छाई की जीत होती है। दीप जलाकर लोग इस बात का प्रतीकात्मक संदेश देते हैं कि उन्हें जीवन में सकारात्मकता और उम्मीद की रोशनी फैलानी है।

2. परिवार और समाज का मेल-जोल

दिवाली का पर्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा समय है जब परिवार और समाज के लोग एक साथ आते हैं। लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, उन्हें सजाते हैं और एक-दूसरे के साथ मिठाइयाँ और उपहार बांटते हैं। दिवाली का त्योहार पारिवारिक और सामाजिक मेल-जोल को भी बढ़ावा देता है।

3. कला और संस्कृति का उत्सव

दिवाली का समय कला और संस्कृति का भी उत्सव है। इस दौरान लोग रंगोली बनाते हैं, घरों को फूलों और दीयों से सजाते हैं और पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं। इसके अलावा, इस समय लोक नृत्य, संगीत और नाटकों का भी आयोजन किया जाता है, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।

4. आर्थिक महत्व

दिवाली के समय बाजारों में खासा रौनक रहती है। लोग नए कपड़े, गहने, मिठाइयाँ और अन्य चीजें खरीदते हैं। इसे व्यापारिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण समय माना जाता है क्योंकि इस दौरान आर्थिक गतिविधियाँ तेज हो जाती हैं। व्यापारी भी इस समय लक्ष्मी पूजा कर आने वाले वर्ष के लिए अच्छी कमाई की कामना करते हैं।

5. पर्यावरण के प्रति जागरूकता

हाल के वर्षों में दिवाली के दौरान प्रदूषण के मुद्दे पर भी जागरूकता बढ़ी है। लोग अब पटाखों की बजाय दीयों और मोमबत्तियों से दिवाली मनाने की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने की कोशिश की जा रही है।

दिवाली के विभिन्न रूप

1. धनतेरस

दिवाली से दो दिन पहले धनतेरस मनाया जाता है। यह दिन धन की देवी लक्ष्मी और आरोग्य के देवता धन्वंतरि की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन लोग नए बर्तन, आभूषण और अन्य कीमती वस्त्र खरीदते हैं।

2. नरक चतुर्दशी

दिवाली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली मनाई जाती है। इस दिन भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर के वध का उत्सव मनाया जाता है।

3. दिवाली की रात

दिवाली की मुख्य रात को लोग अपने घरों में दीये जलाते हैं, लक्ष्मी पूजन करते हैं और एक-दूसरे को मिठाइयाँ बाँटते हैं। यह रात सबसे महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इस दिन देवी लक्ष्मी घर-घर जाकर लोगों को आशीर्वाद देती हैं।

4. गोवर्धन पूजा

दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का आयोजन होता है। यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुलवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने की कथा से जुड़ा है।

5. भाई दूज

दिवाली के आखिरी दिन भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के लिए लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं। भाई-बहन के इस प्रेमपूर्ण रिश्ते को इस दिन विशेष मान्यता दी जाती है।

निष्कर्ष

दिवाली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह त्योहार हमें सत्य, ज्ञान, और सकारात्मकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

Mrityunjay Singh

Mrityunjay Singh