दिवाली, जिसे दीपावली के नाम से भी जाना जाता है, भारत के सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह पर्व न केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि सिख, जैन, और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। दिवाली का अर्थ है ‘दीपों की पंक्ति’, और इस दिन घरों, बाजारों, और सार्वजनिक स्थानों पर दीप जलाए जाते हैं, जिससे चारों ओर रोशनी और उल्लास का माहौल बनता है।
दिवाली की पौराणिक कथाएं
दिवाली का संबंध कई पौराणिक और धार्मिक कथाओं से है, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती हैं। प्रत्येक धर्म और पंथ इस पर्व को अपने विशेष तरीकों से मनाता है, और इसके पीछे विभिन्न धार्मिक कथाएं जुड़ी होती हैं। आइए जानें इन कथाओं को विस्तार से:
1. भगवान राम की अयोध्या वापसी
दिवाली की सबसे प्रचलित और प्रसिद्ध कथा रामायण से जुड़ी हुई है। भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। इस अवधि के दौरान, उन्होंने लंका के राजा रावण का वध किया और अपनी पत्नी सीता को रावण की कैद से मुक्त कराया। अयोध्या की जनता भगवान राम की वापसी पर अत्यंत प्रसन्न हुई और उन्होंने दीप जलाकर नगर को प्रकाशित किया। इस तरह, यह दिन प्रकाश और विजय का प्रतीक बन गया, जो आज भी दिवाली के रूप में मनाया जाता है।
2. माता लक्ष्मी का जन्म
दिवाली का संबंध माता लक्ष्मी से भी जुड़ा हुआ है। पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था, और वे इस दिन स्वर्गलोक से धरती पर आईं। इसलिए, इस दिन को लक्ष्मी पूजन का दिन माना जाता है, जब भक्तगण धन, समृद्धि और खुशहाली की प्राप्ति के लिए माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। दिवाली की रात को विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन और दीप जलाने की परंपरा भी इसी कथा से प्रेरित है।
3. नरकासुर वध और कृष्ण
महाभारत काल में भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था। नरकासुर एक अत्याचारी राजा था, जिसने 16,000 राजकुमारियों को बंदी बना रखा था। भगवान कृष्ण ने उसकी हत्या करके उन्हें मुक्त कराया और अधर्म पर धर्म की विजय प्राप्त की। इस वध के बाद, उस दिन को ‘नरक चतुर्दशी’ या ‘छोटी दिवाली’ के रूप में मनाया जाता है, जो मुख्य दिवाली के एक दिन पहले आती है।
4. राजा बलि की कथा
कई स्थानों पर दिवाली के साथ राजा बलि की कथा भी जुड़ी हुई है। राजा बलि एक दानवीर असुर राजा थे, जिन्हें उनकी दानशीलता के लिए जाना जाता था। विष्णु भगवान ने वामन अवतार धारण कर उनसे तीन पग भूमि दान में मांगी और अंत में उन्हें पाताल लोक भेज दिया। इस दिन को विशेष रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है, और इसे ‘बलि प्रतिपदा’ या ‘बलिपद्यामी’ के रूप में भी जाना जाता है।
किसके लिए खास है दिवाली?
1. व्यापारी वर्ग
व्यापारी वर्ग के लिए दिवाली का पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह समय नई वित्तीय शुरुआत का प्रतीक है, जब व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बंद करके नए बहीखातों की शुरुआत करते हैं। लक्ष्मी पूजन के साथ ही वे अपने व्यापार में समृद्धि और सफलता की कामना करते हैं। कई व्यवसायी इस दिन अपने प्रतिष्ठानों को सजाते हैं और दीप जलाते हैं ताकि माता लक्ष्मी उनके यहां आकर समृद्धि प्रदान करें।
2. किसान वर्ग
किसान वर्ग के लिए दिवाली का समय विशेष महत्व रखता है। यह समय खरीफ की फसल की कटाई का होता है और रबी की फसल बोने की तैयारी होती है। इस अवसर पर किसान अपनी फसलों की अच्छी उपज और समृद्धि के लिए भगवान और देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। दिवाली का पर्व उनके लिए नई शुरुआत और आशा का समय होता है।
3. परिवार और समाज
दिवाली परिवार और समाज के लिए मिलन और एकता का पर्व है। यह त्योहार परिवारों को एक साथ लाने का अवसर प्रदान करता है। लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने जाते हैं, उपहार और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं, और इस मौके पर अपनी पुरानी कड़वाहट को भूलकर एक नई शुरुआत करते हैं। दीपों की रोशनी घर के साथ-साथ रिश्तों में भी नई चमक लाती है।
4. बच्चे और युवा
दिवाली बच्चों और युवाओं के लिए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण और आकर्षक होती है। इस दिन बच्चे नए कपड़े पहनते हैं, मिठाइयों का आनंद लेते हैं, और पटाखे फोड़ने का आनंद उठाते हैं। रंगोली बनाना, दीयों से घर को सजाना, और मिठाई बांटना भी इस त्योहार का हिस्सा होता है, जो बच्चों के लिए इस त्योहार को और भी खास बनाता है।
5. धार्मिक अनुयायी
धार्मिक दृष्टि से, दिवाली का पर्व भगवान और देवी-देवताओं की पूजा का समय होता है। हिंदू धर्म में इसे विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन और गणेश पूजन के लिए मनाया जाता है। इसके साथ ही सिख धर्म में दिवाली को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब गुरु हरगोबिंद साहिब को मुगलों की कैद से रिहा किया गया था। जैन धर्म में इसे भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है, जबकि बौद्ध धर्म में इसे सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने का समय माना जाता है।
दिवाली का आधुनिक महत्व
दिवाली के साथ प्राचीन कथाएं और धार्मिक आस्थाएं जुड़ी होने के बावजूद, यह त्योहार आज के आधुनिक समय में भी उतना ही महत्वपूर्ण है। आज दिवाली केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है। लोग इसे अपने जीवन में नई ऊर्जा और उमंग के साथ मनाते हैं।
व्यापारिक दृष्टि से भी दिवाली एक महत्वपूर्ण समय है, जब बाजारों में रौनक होती है और विभिन्न उद्योगों में उछाल देखने को मिलता है। इस समय कई लोग अपने घरों की सजावट, नए कपड़े, और नए गहनों की खरीदारी करते हैं।
दिवाली का एक और महत्वपूर्ण पहलू पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी है। आज के समय में, बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए कई लोग इको-फ्रेंडली दिवाली मनाने पर जोर देते हैं, जिसमें कम पटाखे जलाना और प्राकृतिक सामग्री से बनी सजावट का उपयोग करना शामिल है।
निष्कर्ष
दिवाली का पर्व केवल धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह समाज के हर वर्ग के लिए एक नई शुरुआत, आशा, और खुशहाली का प्रतीक है। यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की जीत, अधर्म पर धर्म की विजय, और बुराई पर अच्छाई की स्थापना को दर्शाता है।